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चुपके चुपके ये काम करता जा | शाही शायरी
chupke chupke ye kaam karta ja

ग़ज़ल

चुपके चुपके ये काम करता जा

मज़हर इमाम

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चुपके चुपके ये काम करता जा
काम सब का तमाम करता जा

हम को बदनाम कर ज़माने में
कुछ ज़माने में नाम करता जा

याद की शाह-राह-ए-सीमीं पर
ऐ समन-बर ख़िराम करता जा

ऐ कि तेरा मिज़ाज शबनम सा
बर्ग-ए-दिल पर क़याम करता जा

अश्क आँखों में ले के रुख़्सत हो
मेरा मरना हराम करता जा

बस्तियों का उजड़ना बसना क्या
बे-झिजक क़त्ल-ए-आम करता जा

दास्ताँ-गो तिरी कहानी में
रम्ज़ किया है कलाम करता जा

चार छै शेर काम के कह ले
कुछ तो 'मज़हर-इमाम' करता जा