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छुटी उम्मीद तो मैं हाल-ए-दिल कहने से क्यूँ डरता | शाही शायरी
chhuTi ummid to main haal-e-dil kahne se kyun Darta

ग़ज़ल

छुटी उम्मीद तो मैं हाल-ए-दिल कहने से क्यूँ डरता

सफ़ी औरंगाबादी

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छुटी उम्मीद तो मैं हाल-ए-दिल कहने से क्यूँ डरता
मसल मशहूर है सरकार मरता क्या नहीं करता

बहुत अच्छा हुआ दुश्मन ने मुझ से दुश्मनी कर ली
सिवा मेरे न जाने और किस किस को ये ले मरता

अगर दुश्मन से ऐसे पेश आते तो मज़ा पाते
करूँ क्या अर्ज़ जो बरताव मुझ से आप ने बरता

किसी पैमाँ-शिकन ने रुकते रुकते बात तो कर ली
जो वा'दे ही पे हम उड़ते तो ये करता न वो करता

नहीं मुझ से तिरी बे-ए'तिनाई क़ाबिल-ए-हैरत
ग़रीब इंसान दुनिया की निगाहों में नहीं भरता

'सफ़ी' ने ठोकरें खा के भी अपनी वज़्अ कब बदली
समझ वाला अगर होता हसीनों से बहुत डरता