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छुट के ये क़ैद-ए-मकाँ से ला-मकाँ तक जाएगी | शाही शायरी
chhuT ke ye qaid-e-makan se la-makan tak jaegi

ग़ज़ल

छुट के ये क़ैद-ए-मकाँ से ला-मकाँ तक जाएगी

मनोहर लाल हादी

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छुट के ये क़ैद-ए-मकाँ से ला-मकाँ तक जाएगी
बहर-ए-दिल की मौज बहर-ए-बे-कराँ तक जाएगी

इक ज़रा महमेज़ कर फिर देख इस के बाल-ओ-पर
फ़िक्र की परवाज़ बाम-ए-आसमाँ तक जाएगी

चुपके चुपके ही भड़क उठेंगे जब अंदोह-ए-ग़म
चुपके चुपके आँच भी क़ल्ब-ए-तपाँ तक जाएगी

तुम जलाओ तो सही रासिख़ यक़ीं की मिशअलें
जुरअत-ए-दिल वादी-ए-अज़्म-ए-जवाँ तक जाएगी

पूछता फिरता हूँ मैं हर राह से दीवाना-वार
ज़ीस्त आई है कहाँ से और कहाँ तक जाएगी

मैं ख़ुलूस-ए-दिल से 'हादी' जब पुकारूँगा उसे
हर सदा-ए-नातवाँ उस के मकाँ तक जाएगी