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छुपाएँ किस तरह आँखें चमक मोहब्बत की | शाही शायरी
chhupaen kis tarah aankhen chamak mohabbat ki

ग़ज़ल

छुपाएँ किस तरह आँखें चमक मोहब्बत की

नाज़ बट

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छुपाएँ किस तरह आँखें चमक मोहब्बत की
इन आइनों में है हर दम झलक मोहब्बत की

धड़क रही है कोई याद सुर्ख़ फूलों में
झपक रही है दिलों में पलक मोहब्बत की

अजीब रंग किसी की नज़र से छिटके हैं
बदन में फैल रही है धनक मोहब्बत की

हर एक शाख़ पे खिलने लगे बहार में फूल
हर एक दिल में उठी है कसक मोहब्बत की

दिखाई देता है इक अक्स चाँद तारों में
सजाता रहता है राहें फ़लक मोहब्बत की

हसीन होते हैं दिन ख़्वाब से लपेटे हुए
गुलाब करती हैं रातें महक मोहब्बत की

कई दिनों से मुझे 'नाज़' ऐसा लगता है
क़रार ले गई जैसे लपक मोहब्बत की