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छुपा कर अपनी करतूतें हुनर की बात करते हैं | शाही शायरी
chhupa kar apni kartuten hunar ki baat karte hain

ग़ज़ल

छुपा कर अपनी करतूतें हुनर की बात करते हैं

प्रमोद शर्मा असर

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छुपा कर अपनी करतूतें हुनर की बात करते हैं
शजर को काटने वाले समर की बात करते हैं

जले हैं जो नशेमन राख पर उन की खड़े हो कर
जिन्हों ने फूँक डाले घर वो घर की बात करते हैं

अनासिर जिस के थे मेहर-ओ-वफ़ा शफ़क़त अदब ग़ैरत
उन्हें जो भूल बैठा उस बशर की बात करते हैं

घिरे हैं मुद्दतों से जो अँधेरों में मसाइब के
नहीं आती कभी जो उस सहर की बात करते हैं

सभी से बज़्म में हँस कर मिली बे-साख़्ता लेकिन
नहीं हम पर पड़ी जो उस नज़र की बात करते हैं

हुए तक़्सीम जब से दुश्मनी क़ाएम भी है लेकिन
उधर वाले हमारी हम उधर की बात करते हैं

नहीं है राब्ता जिन का 'असर' पैरों के छालों से
घरों से जो नहीं निकले सफ़र की बात करते हैं