छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में
कि ता जाऊँ परी-रू की गली में
न थी ताक़त मुझे आने की लेकिन
ब-ज़ोर-ए-आह पहुँचा तुझ गली में
अयाँ है रंग की शोख़ी सूँ ऐ शोख़
बदन तेरा क़बा-ए-संदली में
जो है तेरे दहन में रंग ओ ख़ूबी
कहाँ ये रंग ये ख़ूबी कली में
किया जियूँ लफ़्ज़ में मअ'नी सिरीजन
मक़ाम अपना दिल-ओ-जान-ए-'वली' में
ग़ज़ल
छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में
वली मोहम्मद वली