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छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं | शाही शायरी
chhoTe chhoTe se mafadat liye phirte hain

ग़ज़ल

छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं

ऐतबार साजिद

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छोटे छोटे से मफ़ादात लिए फिरते हैं
दर-ब-दर ख़ुद को जो दिन रात लिए फिरते हैं

अपनी मजरूह अनाओं को दिलासे दे कर
हाथ में कासा-ए-ख़ैरात लिए फिरते हैं

शहर में हम ने सुना है कि तिरे शोला-नवा
कुछ सुलगते हुए नग़्मात लिए फिरते हैं

मुख़्तलिफ़ अपनी कहानी है ज़माने भर से
मुनफ़रिद हम ग़म-ए-हालात लिए फिरते हैं

एक हम हैं कि ग़म-ए-दहर से फ़ुर्सत ही नहीं
एक वो हैं कि ग़म-ए-ज़ात लिए फिरते हैं