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छोड़िए किस तरह से मय-नोशी | शाही शायरी
chhoDiye kis tarah se mai-noshi

ग़ज़ल

छोड़िए किस तरह से मय-नोशी

जोशिश अज़ीमाबादी

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छोड़िए किस तरह से मय-नोशी
ज़ोर-ए-आलम रखे है बे-होशी

इक नज़र उस को देखने पाएँ
गो मयस्सर न हो हम-आग़ोशी

क़ैद करना किसी को है मंज़ूर
ज़ुल्फ़ करती है तुझ से सरगोशी

हूँ मैं सर-गश्ता मिस्ल-ए-रेग-ए-रवाँ
क्या कहूँ अपनी ख़ाना-बरदोशी

वस्फ़ में उस दहन के ऐ 'जोशिश'
हम ने की इख़्तियार ख़ामोशी