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छोड़ उन को न जाने किधर मैं गया | शाही शायरी
chhoD un ko na jaane kidhar main gaya

ग़ज़ल

छोड़ उन को न जाने किधर मैं गया

अभिषेक कुमार अम्बर

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छोड़ उन को न जाने किधर मैं गया
दूर तक था न कुछ जिस डगर मैं गया

अपने हाथों से उस ने जो मुझ को छुआ
देख तुझ से ज़ियादा निखर मैं गया

सोच कर बस यही अब मिलेगा ख़ुदा
हर गली और बस्ती नगर मैं गया

देख कर मेरे हालात देगी वो रो
मिलने वापस अगर माँ से घर मैं गया