छोड़ हर एक को बुरा कहना
ऐसी सूरत पे तुझ को क्या कहना
बे-वफ़ाओं को बा-वफ़ा कहना
आप की बात वाह क्या कहना
तुम ने क्या ऐब हम में देखा है
देखो अच्छा नहीं बुरा कहना
मैं ने क्या क्या कहा है लोगों से
एक बार और फिर ज़रा कहना
जानते कब हैं मुझ को अपना दोस्त
मानते कब हैं वो मिरा कहना
मुझ को ग़ुस्से से देख कर न रुको
दिल में जो कुछ भी आ गया कहना
मैं मोहब्बत में क्या करूँ इंसाफ़
कोई इंसाफ़ से ज़रा कहना
आप को आज तक नहीं आया
वाक़िआ' सब से एक सा कहना
ख़ूब नक़लें उतारते हैं आप
आफ़रीं वाह वाह क्या कहना
क्या कहा मैं कभी नहीं सुनता
और फिर उस पे आप का कहना
उन को कहना सलाम ऐ क़ासिद
और दरबान को दुआ कहना
ऐ 'सफ़ी' है अभी तो दिल्ली दूर
कौन कहता है आ गया कहना

ग़ज़ल
छोड़ हर एक को बुरा कहना
सफ़ी औरंगाबादी