छोड़ दे मार लात दुनिया को
कुछ नहीं है सबात दुनिया को
हाथ आई है जिस को दौलत-ए-फ़क़्र
उन ने मारी है लात दुनिया को
ज़ाल-ए-दुनिया ही सा है वो बद-ज़ात
जो कहे नेक-ज़ात दुनिया को
दाम-ए-उल्फ़त में सब को खींचे है
आ गई है ये घात दुनिया को
पुश्त-ए-पा मारे मसनद-ए-जम पर
जो लगाए न हाथ दुनिया को
तू जो मरता है उस पर ऐ 'जोशिश'
ले गया कोई साथ दुनिया को
ग़ज़ल
छोड़ दे मार लात दुनिया को
जोशिश अज़ीमाबादी