छिड़ा पहले-पहल जब साज़-ए-हस्ती
तो हर पर्दे ने दी आवाज़-ए-हस्ती
ख़याल-ए-यार तेरे सदक़े जाऊँ
तिरे दम से है सोज़-ओ-साज़-ए-हस्ती
मैं मरने के लिए पैदा हुआ हूँ
मिरा अंजाम है आग़ाज़-ए-हस्ती
सुकून-ए-काएनात-ए-दिल बक़ा है
अजल इक जुम्बिश-ए-पर्वाज़-ए-हस्ती
मिरी ख़ाक-ए-सहर का ज़र्रा ज़र्रा
है 'बेदम' मख़्ज़न-ए-सद-राज़-ए-हस्ती
ग़ज़ल
छिड़ा पहले-पहल जब साज़-ए-हस्ती
बेदम शाह वारसी