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छिड़ा पहले-पहल जब साज़-ए-हस्ती | शाही शायरी
chhiDa pahle-pahal jab saz-e-hasti

ग़ज़ल

छिड़ा पहले-पहल जब साज़-ए-हस्ती

बेदम शाह वारसी

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छिड़ा पहले-पहल जब साज़-ए-हस्ती
तो हर पर्दे ने दी आवाज़-ए-हस्ती

ख़याल-ए-यार तेरे सदक़े जाऊँ
तिरे दम से है सोज़-ओ-साज़-ए-हस्ती

मैं मरने के लिए पैदा हुआ हूँ
मिरा अंजाम है आग़ाज़-ए-हस्ती

सुकून-ए-काएनात-ए-दिल बक़ा है
अजल इक जुम्बिश-ए-पर्वाज़-ए-हस्ती

मिरी ख़ाक-ए-सहर का ज़र्रा ज़र्रा
है 'बेदम' मख़्ज़न-ए-सद-राज़-ए-हस्ती