चेहरे पे न ये नक़ाब देखा
पर्दे में था आफ़्ताब देखा
क्यूँ कर न बिकूँ मैं हाथ उस के
यूसुफ़ की तरह मैं ख़्वाब देखा
कुछ मैं ही नहीं हूँ, एक आलम
उस के लिए याँ ख़राब देखा
दिल तू ने अबस लिखा था नामा
जो उन ने दिया जवाब देखा
बे-जुर्म ओ गुनाह क़त्ल-ए-आशिक़
मज़हब में तिरे सवाब देखा
कुछ होवे तो हो अदम में राहत
हस्ती में तो हम अज़ाब देखा
जिस चश्म ने मुझ तरफ़ नज़र की
उस चश्म को मैं पुर-आब देखा
हैरान वो तेरे इश्क़ में है
याँ हम ने जो शैख़ ओ शाब देखा
भूला है वो दिल से लुत्फ़ उस का
'सौदा' ने ये जब इताब देखा
ग़ज़ल
चेहरे पे न ये नक़ाब देखा
मोहम्मद रफ़ी सौदा