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चेहरे मकान राह के पत्थर बदल गए | शाही शायरी
chehre makan rah ke patthar badal gae

ग़ज़ल

चेहरे मकान राह के पत्थर बदल गए

फ़ुज़ैल जाफ़री

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चेहरे मकान राह के पत्थर बदल गए
झपकी जो आँख शहर के मंज़र बदल गए

शहरों में हँसती खेलती चलती रही मगर
जंगल में बाद-ए-सुब्ह के तेवर बदल गए

हाँ इस में कामदेव की कोई ख़ता नहीं
रस्ते वफ़ा के सख़्त थे दिलबर बदल गए

वो आँधियाँ चली हैं सर-ए-दश्त आरज़ू
दिल बुझ गया वफ़ाओं के मेहवर बदल गए

फूटी किरन तो जाग उठी ज़िंदगी 'फ़ुज़ैल'
सुनसान रास्तों के मुक़द्दर बदल गए