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चेहरे धुआँ धुआँ हैं ये आसार देख कर | शाही शायरी
chehre dhuan dhuan hain ye aasar dekh kar

ग़ज़ल

चेहरे धुआँ धुआँ हैं ये आसार देख कर

ख़ुर्शीद सहर

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चेहरे धुआँ धुआँ हैं ये आसार देख कर
आईना-ए-ख़ुलूस शरर-बार देख कर

फिर कोई कुछ न बोल सका कुछ न कर सका
उस बे-ज़बाँ की जुरअत-ए-इज़हार देख कर

कुछ और तेज़ हो गई लम्हों की सख़्त धूप
ठहरे जहाँ भी साया-ए-दीवार देख कर

रस्ते में कोई मोड़ न कोह-ए-गिराँ मिला
मैं लौट आया राह को हमवार देख कर

वो मंज़र-ए-शिकस्ता कि दिल डूबने लगा
आँखें लरज़ गईं पस-ए-दीवार देख कर