चौधवाँ उस चंदर का साल हुआ
हुस्न में बद्र बा-कमाल हुआ
तुझ सा चंचल नहीं ज़माने में
रम में ऐ मन हिरन ग़ज़ाल हुआ
बाग़-ए-दिल में तू नख़्ल-ए-तूबा है
सर्व तुझ क़द से पाएमाल हुआ
रात दिन तू रहे रक़ीबाँ-संग
देखना तेरा मुझ मुहाल हुआ
देख कर तुझ नयन की शोख़ी कूँ
थक के सहरा-नशीं ग़ज़ाल हुआ
मुर्ग़-ए-दिल के फँसाने को मेरे
दाना-ओ-दाम ज़ुल्फ़ ओ ख़ाल हुआ
ज़ुल्फ़ की हर शिकन में तुझ मेरा
दिल गिरफ़्तार बाल बाल हुआ
ग़ज़ल
चौधवाँ उस चंदर का साल हुआ
सदरुद्दीन मोहम्मद फ़ाएज़