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चश्मा-ए-बद-मस्त को फिर शेवा-ए-दिल-दारी दे | शाही शायरी
chashma-e-bad-mast ko phir shewa-e-dil-dari de

ग़ज़ल

चश्मा-ए-बद-मस्त को फिर शेवा-ए-दिल-दारी दे

अली सरदार जाफ़री

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चश्मा-ए-बद-मस्त को फिर शेवा-ए-दिल-दारी दे
दिल-ए-आवारा को पैग़ाम-ए-गिरफ़्तारी दे

इश्क़ है सादा-ओ-मासूम उसे अपनी तरह
जौहर-ए-तेग़-ए-अदा ख़ंजर-ए-अय्यारी दे

जो दुखे दिल हैं उन्हें दौलत-ए-दरमाँ हो अता
दर्द के हाथ में मत कासा-ए-नादारी दे

कितनी फ़र्सूदा है ये जुर्म-ओ-सज़ा की दुनिया
सर-कशी दिल को नया ज़ौक़-ए-गुनहगारी दे

शाख़-ए-गुल कब से है सीने में छुपाए हुए गुल
देखें कब बाद-ए-सबा हुक्म-ए-चमन-कारी दे

ऐ मिरे शो'ला-ए-दिल शो'ला-ए-शेर-ओ-दानिश
रात आख़िर है उसे जश्न-ए-शरर-बारी दे

चमन अफ़्सुर्दा है ऐ जान-ए-चमन रूह-ए-बहार
गुल को भी अपने तबस्सुम की फ़ुसूँ-कारी दे