चश्म से ग़ाफ़िल न हुआ चाहिए
उस के मुक़ाबिल न हुआ चाहिए
दिल का ज़रर जान का नुक़सान है
अब कहीं माइल न हुआ चाहिए
है बुत-ए-खूँ-ख़्वार बहुत तुंद-ख़ू
बोसा के साइल न हुआ चाहिए
अक़्ल को दिल छोड़ रह-ए-इश्क़ में
हमरह-ए-काहिल न हुआ चाहिए
रोज़ तनज़्ज़ुल में है माह-ए-तमाम
दहर में कामिल न हुआ चाहिए
यार कमर बाँधिए इंसाफ़ पर
बर-सर-ए-बातिल न हुआ चाहिए
क़त्ल के क़ाबिल है ये 'जोशिश' तिरा
ग़ैर के क़ातिल न हुआ चाहिए

ग़ज़ल
चश्म से ग़ाफ़िल न हुआ चाहिए
जोशिश अज़ीमाबादी