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चश्म से ग़ाफ़िल न हुआ चाहिए | शाही शायरी
chashm se ghafil na hua chahiye

ग़ज़ल

चश्म से ग़ाफ़िल न हुआ चाहिए

जोशिश अज़ीमाबादी

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चश्म से ग़ाफ़िल न हुआ चाहिए
उस के मुक़ाबिल न हुआ चाहिए

दिल का ज़रर जान का नुक़सान है
अब कहीं माइल न हुआ चाहिए

है बुत-ए-खूँ-ख़्वार बहुत तुंद-ख़ू
बोसा के साइल न हुआ चाहिए

अक़्ल को दिल छोड़ रह-ए-इश्क़ में
हमरह-ए-काहिल न हुआ चाहिए

रोज़ तनज़्ज़ुल में है माह-ए-तमाम
दहर में कामिल न हुआ चाहिए

यार कमर बाँधिए इंसाफ़ पर
बर-सर-ए-बातिल न हुआ चाहिए

क़त्ल के क़ाबिल है ये 'जोशिश' तिरा
ग़ैर के क़ातिल न हुआ चाहिए