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चश्म का कर रहा हूँ तर तब्दील | शाही शायरी
chashm ka kar raha hun tar tabdil

ग़ज़ल

चश्म का कर रहा हूँ तर तब्दील

मुज़दम ख़ान

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चश्म का कर रहा हूँ तर तब्दील
हो नहीं पा रहा मगर तब्दील

इक ज़रूरत को दूसरी के साथ
लोग करते हैं उम्र भर तब्दील

वहाँ फिर इश्क़ के हुए मतलब
जहाँ होते थे सिर्फ़ घर तब्दील

ये तो बस थान है रखो तुम हाथ
होने लग जाए दिल का बर तब्दील

एक लड़की भी इस में रहती है
दिल करो मुझ से सोच कर तब्दील

जब भी नज़दीक होती है मंज़िल
फिर से हो जाता है सफ़र तब्दील

देख कर मंडियों की सूरत-ए-हाल
कर रहा है शजर समर तब्दील

में वो मय्यत हूँ जिस की ज़िंदा से
हो गई है कहीं ख़बर तब्दील

नए माहौल में उड़ेंगे वो
जो परिंदे करेंगे पर तब्दील

वस्ल का लुत्फ़ हो गया बर्बाद
तुम ने क्यूँ की अगर मगर तब्दील

अच्छी आँखें बदल के देखा है
नहीं होती बुरी नज़र तब्दील

कि किसी रह पे वो मिले 'मुज़दम'
रोज़ करते हैं रहगुज़र तब्दील