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चश्म-ए-तर को ज़बान कर बैठे | शाही शायरी
chashm-e-tar ko zaban kar baiThe

ग़ज़ल

चश्म-ए-तर को ज़बान कर बैठे

इफ़्तिख़ार राग़िब

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चश्म-ए-तर को ज़बान कर बैठे
हाल दिल का बयान कर बैठे

तुम ने रस्मन मुझे सलाम किया
लोग क्या क्या गुमान कर बैठे

एक पल भी कहाँ सुकून मिला
आप को जब से जान कर बैठे

पस्तियों में कभी गिरा डाला
और कभी आसमान कर बैठे

आस की शम्अ टिमटिमाती रही
हम कहाँ हार मान कर बैठे

एक पल का यक़ीं नहीं 'राग़िब'
इक सदी का प्लान कर बैठे