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चशम-ए-ख़ूँबार सा बरसे न कभू पानी एक | शाही शायरी
chashm-e-KHunbar sa barse na kabhu pani ek

ग़ज़ल

चशम-ए-ख़ूँबार सा बरसे न कभू पानी एक

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल

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चशम-ए-ख़ूँबार सा बरसे न कभू पानी एक
अब्र हर चंद करे अपना लहू पानी एक

शुस्त-ओ-शू नामा-ए-आमाल की जिस से होए
बरस ऐ अब्र-ए-करम मुझ पे वो तू पानी एक

लाख पानी से मैं धोया न छुटा ज़ख़्म का ख़ून
काम आया न मिरे वक़्त-ए-रफ़ू पानी एक

आज तक अश्क मिरी आँख से गिरते हैं सफ़ेद
ज़र्फ़ में अपने ये रखता है सुबू पानी एक

ता-कमर अब्र-ए-मिज़ा अपना तो बरसा सौ बार
न हुआ मौज-ज़नाँ ता-ब-गुलू पानी एक

हम तिरी चाल से दिल क्यूँकि न हारें इस ऐ चर्ख़
बाज़ी दुश्वार है तुझ से तो अदू पानी एक

बाज़ी-ए-मुर्ग़ में भी हार रही 'ग़ाफ़िल' की
तुझ से जीता न वो ऐ अरबदा-जू पानी एक