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चर्ख़ भी छू लें तो जाना है इसी मिट्टी में | शाही शायरी
charKH bhi chhu len to jaana hai isi miTTi mein

ग़ज़ल

चर्ख़ भी छू लें तो जाना है इसी मिट्टी में

अख़लाक़ बन्दवी

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चर्ख़ भी छू लें तो जाना है इसी मिट्टी में
मुस्तक़िल अपना ठिकाना है इसी मिट्टी में

जिन के दामन पे कभी चांद-सितारे चमके
दफ़न उन का भी फ़साना है इसी मिट्टी में

बे-अमल हाथ लगाए भी तो ख़ाली जाए
हाँ जफ़ा-कश का ख़ज़ाना है इसी मिट्टी में

इस तरह चल कि ये पामाल न होने पाए
बे-ख़बर आब है दाना है इसी मिट्टी में

हम-वतन ख़ाक-ए-वतन क्यूँ न हो प्यारी कि हमें
बा'द-अज़-मर्ग भी जाना है इसी मिट्टी में

लोग कल कह के तुझे याद करेंगे 'अख़लाक़'
शाइ'र-ए-फ़ख़्र-ए-ज़माना है इसी मिट्टी में