चर्चे तिरे ख़ुलूस के दुनिया में कम न थे
फिर भी तिरे करम के सज़ा-वार हम न थे
होगा कोई शरीर सा झोंका नसीम का
जिस ने तिरी नक़ाब उठाई वो हम न थे
मुज़्मर थीं तेरे जौर में तेरी इनायतें
तेरे सितम भी तेरी नवाज़िश से कम न थे
उस रास्ते पे छोड़ गया राहबर मुझे
जिस रास्ते पे आप के नक़्श-ए-क़दम न थे
मासूमियत ने जीना भी दुश्वार कर दिया
ना-कर्दा-कार दिल में कभी इतने ग़म न थे
कुछ बोझ बन चुकी थीं तिरी कम-निगाहियाँ
महफ़िल में इंतिशार का बाइ'स तो हम न थे
'कौसर' को बारयाबी का एज़ाज़ मिल गया
पहले ही उस पे आप के एहसान कम न थे

ग़ज़ल
चर्चे तिरे ख़ुलूस के दुनिया में कम न थे
महेर चंद काैसर