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चर्चे तिरे ख़ुलूस के दुनिया में कम न थे | शाही शायरी
charche tere KHulus ke duniya mein kam na the

ग़ज़ल

चर्चे तिरे ख़ुलूस के दुनिया में कम न थे

महेर चंद काैसर

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चर्चे तिरे ख़ुलूस के दुनिया में कम न थे
फिर भी तिरे करम के सज़ा-वार हम न थे

होगा कोई शरीर सा झोंका नसीम का
जिस ने तिरी नक़ाब उठाई वो हम न थे

मुज़्मर थीं तेरे जौर में तेरी इनायतें
तेरे सितम भी तेरी नवाज़िश से कम न थे

उस रास्ते पे छोड़ गया राहबर मुझे
जिस रास्ते पे आप के नक़्श-ए-क़दम न थे

मासूमियत ने जीना भी दुश्वार कर दिया
ना-कर्दा-कार दिल में कभी इतने ग़म न थे

कुछ बोझ बन चुकी थीं तिरी कम-निगाहियाँ
महफ़िल में इंतिशार का बाइ'स तो हम न थे

'कौसर' को बारयाबी का एज़ाज़ मिल गया
पहले ही उस पे आप के एहसान कम न थे