चर्चा हमारा इश्क़ ने क्यूँ जा-ब-जा किया
दिल उस को दे दिया तो भला क्या बुरा क्या
अब खोलिए किताब-ए-नसीहत को शैख़ फिर
शब मय-कदे में आप ने जो कुछ किया किया
वो ख़्वाब-ए-नाज़ में थे मिरा दीदा-ए-नियाज़
देखा किया और उन की बलाएँ लिया किया
रोज़-ए-अज़ल से ता-ब-अबद अपनी जैब का
था एक चाक जिस को मैं बैठा सिया किया
देखे जो दाग़ दामन-ए-इसयाँ पे बे-शुमार
मैं ने भी जोश-ए-गिर्या से तूफ़ाँ बपा किया
गुम-कर्दा राह आए हैं वो आज मेरे घर
ऐ मेरी आह-ए-नीम-शबी तू ने क्या किया
क्या पूछते हो दस्त-ए-क़नाअत की कोतही
कुछ वा शब-ए-विसाल में बंद क़बा किया
लज़्ज़त ही थी कुछ ऐसी कि छोड़ा न सब्र को
करते रहे वो जौर-ओ-सितम मैं सहा किया
क्या शय थी वो जो आँख से दिल में उतर गई
दिल से उठी तो अश्क का तूफ़ाँ बपा किया
फिर ले चला है कल मुझे क्यूँ बज़्म-ए-यार में
ईजाद उस ने क्या कोई तर्ज़-ए-जफ़ा किया
'शैदा' ग़ज़ल पढ़ो कोई मज्लिस में दूसरी
इक पढ़ के रह गए तो भला तुम ने क्या किया
ग़ज़ल
चर्चा हमारा इश्क़ ने क्यूँ जा-ब-जा किया
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा