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चराग़-ए-ज़ीस्त मद्धम है अभी तू नम न कर आँखें | शाही शायरी
charagh-e-zist maddham hai abhi tu nam na kar aankhen

ग़ज़ल

चराग़-ए-ज़ीस्त मद्धम है अभी तू नम न कर आँखें

रेनू नय्यर

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चराग़-ए-ज़ीस्त मद्धम है अभी तू नम न कर आँखें
अभी उम्मीद में दम है अभी तू नम न कर आँखें

कभी तो वस्ल की चारागरी भी काम आएगी
अभी तो हिज्र मरहम है अभी तू नम न कर आँखें

अभी तो सामने बैठी हूँ बिल्कुल सामने तेरे
अभी किस बात का ग़म है अभी तू नम न कर आँखें

अभी जो फ़िक्र है तेरी उसे साबित तो होने दे
अभी यारों में दम-ख़म है अभी तू नम न कर आँखें

सराबों से अभी उम्मीद के झरने नहीं फूटे
अजब तिश्ना सा आलम है अभी तू नम न कर आँखें

बहारें हों न हों फिर भी चमन ख़ाली नहीं रहता
ये मौसम ग़म का मौसम है अभी तू नम न कर आँखें

अभी मंज़र बदलते ही बदल जाएँगे सब चेहरे
बिछड़ते वक़्त का ग़म है अभी तू नम न कर आँखें

अभी ऐ बुलबुलो गाओ न नग़्मे तुम बहारों के
अभी तो लुत्फ़-ए-पैहम है अभी तू नम न कर आँखें