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चराग़-ए-हुस्न है रौशन किसी का | शाही शायरी
charagh-e-husn hai raushan kisi ka

ग़ज़ल

चराग़-ए-हुस्न है रौशन किसी का

बयान मेरठी

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चराग़-ए-हुस्न है रौशन किसी का
हमारा ख़ून है रोग़न किसी का

अभी नादान हैं महशर के फ़ित्ने
रहें थामे हुए दामन किसी का

दिल आया है क़यामत है मिरा दिल
उठे ताज़ीम दे जौबन किसी का

ये महशर और ये महशर के फ़ित्ने
किसी की शोख़ियाँ बचपन किसी का

अदाएँ ता-अबद बिखरी पड़ी हैं
अज़ल में फट पड़ा जौबन किसी का

किया तलवार ने घुँघट मिरे बा'द
न मुँह देखेगी ये दुल्हन किसी का

हमारी ख़ाक महशर तक उड़ी है
न हाथ आया मगर दामन किसी का

बजाए गुल मिरी तुर्बत पे हों ख़ार
कि उलझे गोशा-ए-दामन किसी का

'बयाँ' बर्क़-ए-बला चितवन किसी की
दिल-ए-पुर-आरज़ू ख़िर्मन किसी का