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चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं | शाही शायरी
charagh dil ka muqabil hawa ke rakhte hain

ग़ज़ल

चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं

हस्तीमल हस्ती

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चराग़ दिल का मुक़ाबिल हवा के रखते हैं
हर एक हाल में तेवर बला के रखते हैं

मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखते हैं

हमें पसंद नहीं जंग में भी मक्कारी
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं

कहीं ख़ुलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
बड़े क़रीने से घर को सजा के रखते हैं

अना-पसंद हैं 'हस्ती'-जी सच सही लेकिन
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं