चंचलाहट में तू ममोला है
झिलझिलाहट में दर अमोला है
देख तुझ मुख कूँ यूँ छुपे यूसुफ़
जूँ कबूतर कुएँ में कोला है
सैर करता हूँ बैठ कर उस बीच
दिल हमारा उड़न-खटोला है
सर्व सीं क़द है यार का मौज़ूँ
मैं ने मीज़ान लीं के तोला है
सर्द-मेहरी सीं बे-वफ़ा का हाल
है ख़ुनुक इस क़दर कि ओला है
जान कर के अजान होता है
तुम न जानो कि जान भोला है
हम सूँ सब मिल कहो मुबारकबाद
कि टुक इक हँस के आ के बोला है
'आबरू' हाए क्यूँ गले न लगा
मेरे दिल में यही मलोला है
ग़ज़ल
चंचलाहट में तू ममोला है
आबरू शाह मुबारक