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चमका है यूँ नसीब का तारा कभी कभी | शाही शायरी
chamka hai yun nasib ka tara kabhi kabhi

ग़ज़ल

चमका है यूँ नसीब का तारा कभी कभी

मंज़र लखनवी

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चमका है यूँ नसीब का तारा कभी कभी
हम को तो ख़ुद उसी ने पुकारा कभी कभी

ले डूबता है दिल को सहारा कभी कभी
मंजधार बन गया है किनारा कभी कभी

ये भी हुआ है हाल हमारा कभी कभी
अपने को हम ने आप पुकारा कभी कभी

अपने से बे-नियाज़ हुआ जा रहा हूँ मैं
सुन सुन के तुम से हाल तुम्हारा कभी कभी

साथ अपने शाम-ए-हिज्र के जागूँ कि आस भी
ले डूबता है सुबह का तारा कभी कभी

तूफ़ाँ से बचने वाले बहुत शादमाँ न हो
कश्ती पे फट पड़ा है किनारा कभी कभी

'मंज़र' शिकायतों की तलाफ़ी ज़रूर है
इक सज्दा शुक्र का भी ख़ुदारा कभी कभी