चमन में थे जो चमन ही की दास्तान सुनते 
कोई नवा कोई नग़्मा कोई फ़ुग़ाँ सुनते 
क़दम न छोड़ते राहों को ता-बा-मंज़िल-ए-शौक़ 
हमारी बात जो ये अहल-ए-कारवाँ सुनते 
तिरे क़लम से तो गुलज़ार-ए-बे-नवा का क़फ़स 
तिरी ज़बाँ से भी कुछ हाल-ए-बे-ज़बाँ सुनते 
हमारे दर्द का तूफ़ाँ कहाँ कहाँ न उठा 
ये शोर आप जहाँ चाहते वहाँ सुनते 
इक उम्र अपनी भी गुज़री है ऐ चमन वालो 
गुलों के कुंज में अँदेशा-ए-ख़िज़ाँ सुनते 
किसी का रंज किसी का अलम किसी का मलाल 
अब और क्या था जो हम ज़ेर-ए-आसमाँ सुनते 
गुलों से बच के चले बुलबुलों से कतराए 
वो मेरा क़िस्सा-ए-ख़ूनीं कहाँ कहाँ सुनते 
कुछ इस में अपना भी सोज़-ए-बयाँ था ऐ 'जज़्बी' 
वगर्ना लोग कब अफ़साना-ए-जहाँ सुनते
 
        ग़ज़ल
चमन में थे जो चमन ही की दास्तान सुनते
मुईन अहसन जज़्बी

