चमन में दहर के आ कर मैं क्या निहाल हुआ
ब-रंग-ए-सब्ज़ा-ए-बेगाना पाएमाल हुआ
कहानी कह के सुलाते थे यार को सो अब
फ़साना उम्र हुई ख़्वाब वो ख़याल हुआ
जुनूँ की चाक-ज़नी ने असर किया वाँ भी
जो ख़त में हाल लिखा था वो ख़त का हाल हुआ
'नसीम' दुज़दी-ए-मज़मूँ न छोड़ेंगे शोअरा
अगरचे शहर का तब्दील कोतवाल हुआ
ग़ज़ल
चमन में दहर के आ कर मैं क्या निहाल हुआ
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी