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चमन में आप की तरह गुलाब एक भी नहीं | शाही शायरी
chaman mein aap ki tarah gulab ek bhi nahin

ग़ज़ल

चमन में आप की तरह गुलाब एक भी नहीं

अनवर शऊर

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चमन में आप की तरह गुलाब एक भी नहीं
हुज़ूर एक भी नहीं जनाब एक भी नहीं

मुबाहिसों का मा-हसल फ़क़त ख़लिश फ़क़त ख़लल
सवाल ही सवाल हैं जवाब एक भी नहीं

इधर किसी से कुछ लिया इधर किसी को दे दिया
चुनाँचे वाजिब-उल-अदा हिसाब एक भी नहीं

कुतुब के ढेर में न हो सहीफ़ा ज़िक्र-ए-यार का
तो क़ाबिल-ए-मुतालिआ' किताब एक भी नहीं

क़वी भी है ज़ईफ़ भी हमारा हाफ़िज़ा 'शुऊर'
मज़े तमाम याद हैं अज़ाब एक भी नहीं