चमन में आप की तरह गुलाब एक भी नहीं
हुज़ूर एक भी नहीं जनाब एक भी नहीं
मुबाहिसों का मा-हसल फ़क़त ख़लिश फ़क़त ख़लल
सवाल ही सवाल हैं जवाब एक भी नहीं
इधर किसी से कुछ लिया इधर किसी को दे दिया
चुनाँचे वाजिब-उल-अदा हिसाब एक भी नहीं
कुतुब के ढेर में न हो सहीफ़ा ज़िक्र-ए-यार का
तो क़ाबिल-ए-मुतालिआ' किताब एक भी नहीं
क़वी भी है ज़ईफ़ भी हमारा हाफ़िज़ा 'शुऊर'
मज़े तमाम याद हैं अज़ाब एक भी नहीं
ग़ज़ल
चमन में आप की तरह गुलाब एक भी नहीं
अनवर शऊर