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चमन को आग लगाने की बात करता हूँ | शाही शायरी
chaman ko aag lagane ki baat karta hun

ग़ज़ल

चमन को आग लगाने की बात करता हूँ

शाद आरफ़ी

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चमन को आग लगाने की बात करता हूँ
समझ सको तो ठिकाने की बात करता हूँ

शराब-ए-तल्ख़ पिलाने की बात करता हूँ
ख़ुद-आगही को जगाने की बात करता हूँ

सुखनवरों को जलाने की बात करता हूँ
कि जागतों को जगाने की बात करता हूँ

उठी हुई है जो रंगीनी-ए-तग़ज़्ज़ुल पर
वो हर नक़ाब गिराने की बात करता हूँ

इस अंजुमन से उठूँगा खरी खरी कह कर
फिर अंजुमन में न आने की बात करता हूँ

यहाँ चराग़ तले लूट है अंधेरा है
कहाँ चराग़ जलाने की बात करता हूँ

वो बाग़बान! जो फूलों से बैर रखता है
ये आप ही के ज़माने की बात करता हूँ

रविश रविश पे बिछा दो बबूल के काँटे
चमन से लुत्फ़ उठाने की बात करता हूँ

वहाँ शराब पिलाता हूँ अहल-ए-बीनश को
जहाँ भी ख़ून बहाने की बात करता हूँ

मिज़ाज-ए-हुस्न कहीं बद-मज़ा न हो जाए
अदल बदल के फ़साने की बात करता हूँ

मगर फ़रेब-दही में दरकार है अछूता-पन
तिरे फ़रेब में आने की बात करता हूँ

वहीं से शेर में बरजस्तगी नहीं रहती
जहाँ से हाल छुपाने की बात करता हूँ

पिला रहा हूँ मैं काँटों को ख़ून-ए-दिल ऐ 'शाद'
गुलों के रंग उड़ाने की बात करता हूँ