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चमन चमन ही नहीं है जो लाला-ज़ार नहीं | शाही शायरी
chaman chaman hi nahin hai jo lala-zar nahin

ग़ज़ल

चमन चमन ही नहीं है जो लाला-ज़ार नहीं

शंकर लाल शंकर

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चमन चमन ही नहीं है जो लाला-ज़ार नहीं
हम उस को दिल नहीं कहते जो दाग़-दार नहीं

मैं चल रहा हूँ ज़माने के साथ साथ मगर
फ़ज़ा ज़माने की फिर भी तो साज़गार नहीं

रक़ीब झूट कहेगा तो सच समझ लोगे
कहेंगे सच भी अगर हम तो ए'तिबार नहीं

मैं उन के हुस्न को इल्ज़ाम देने वाला कौन
जब अपने दिल पे मुझे ख़ुद ही इख़्तियार नहीं

अब और देखिए तौहीन-ए-इश्क़ क्या होगी
वो कह रहे हैं हमें तेरा ए'तिबार नहीं

तुम्हारे हिज्र में दिन किस क़दर गुज़ारे हैं
कोई हिसाब नहीं है कोई शुमार नहीं

तिरे करम के भरोसे पे मुतमइन हूँ मैं
ये जानता हूँ कि मुझ सा गुनाहगार नहीं

किसी के रुख़ पे नज़र जम के रह गई शायद
मिरी निगाह में रंगीनी-ए-बहार नहीं

ख़ुमार-ए-नश्शा-ए-हस्ती है वो बला 'शंकर'
बहक रहा है हर इक कोई होशियार नहीं