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चमकती आँख में सहरा दिखाई साफ़ देता है | शाही शायरी
chamakti aankh mein sahra dikhai saf deta hai

ग़ज़ल

चमकती आँख में सहरा दिखाई साफ़ देता है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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चमकती आँख में सहरा दिखाई साफ़ देता है
मिरे लहजे में सन्नाटा सुनाई साफ़ देता है

मैं इक असरार-ए-मातम लाख ख़ुद में गुम हुआ जाऊँ
मगर सीना किसी शय की दुहाई साफ़ देता है

वो क्या क्या बात करता है न इक पल भी बिछड़ने की
मगर लहजा कि एहसास-ए-जुदाई साफ़ देता है

सफ़ें यूँ तो मुक़ाबिल दुश्मनों की हैं मगर उन में
अजब इक मेहरबाँ चेहरा दिखाई साफ़ देता है

मैं आ पहुँचा हूँ ऐ 'बानी' अजब अंधी जगह माना
है अब भी एक रस्ता जो सुझाई साफ़ देता है