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चमकते ख़्वाब मिलते हैं महकते प्यार मिलते हैं | शाही शायरी
chamakte KHwab milte hain mahakte pyar milte hain

ग़ज़ल

चमकते ख़्वाब मिलते हैं महकते प्यार मिलते हैं

ख़ुर्शीद अहमद जामी

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चमकते ख़्वाब मिलते हैं महकते प्यार मिलते हैं
तुम्हारे शहर में कितने हसीं आज़ार मिलते हैं

चले आते हैं चुपके से ख़यालों के मह ओ अंजुम
मिरी तारीक रातों को बहुत ग़म-ख़्वार मिलते हैं

दबे लहजा में ये कह कर नसीम-ए-जाँ-फ़ज़ा गुज़री
चलो उन रेगज़ारों से परे गुलज़ार मिलते हैं

ग़ज़ल को तजरबात-ए-ज़िंदगी की धूप में 'जामी'
नए उस्लूब मिलते हैं नए मेयार मिलते हैं