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चमकने लगा है तिरा ग़म बहुत | शाही शायरी
chamakne laga hai tera gham bahut

ग़ज़ल

चमकने लगा है तिरा ग़म बहुत

नूर बिजनौरी

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चमकने लगा है तिरा ग़म बहुत
दिए हो चले अब तो मद्धम बहुत

घटाओं में तूफ़ाँ के आसार हैं
तिरी ज़ुल्फ़ है आज बरहम बहुत

यहाँ लहलहाए हैं अश्कों में बाग़
न इतराए फूलों पे शबनम बहुत

ये वो दौर है जिस का दरमाँ नहीं
ये वो राज़ है जिस के महरम बहुत

ये दामान-ए-वहशत की कुछ धज्जियाँ
बनाएँगे लोग इन से परचम बहुत

गदा-ए-मोहब्बत की ख़ुद्दारियाँ
मिले राह में ख़ुसरव-ओ-जम बहुत

सुलगती रही रात भर चाँदनी
शब-ए-हिज्र थी रौशनी कम बहुत

न जाएगी दिल से कभी आरज़ू
ये बुनियाद है आह-ए-मोहकम बहुत