EN اردو
चमक रहा है मिरा सर भी मैं भी दुनिया भी | शाही शायरी
chamak raha hai mera sar bhi main bhi duniya bhi

ग़ज़ल

चमक रहा है मिरा सर भी मैं भी दुनिया भी

असअ'द बदायुनी

;

चमक रहा है मिरा सर भी मैं भी दुनिया भी
इक आईना है समुंदर भी मैं भी दुनिया भी

खुला कि एक ही रिश्ते में मुंसलिक हैं तमाम
ये मेरा सर भी ये पत्थर भी मैं भी दुनिया भी

किसी गुनाह की पादाश में हैं सब ज़िंदा
मिरे शजर मिरे मंज़र भी मैं भी दुनिया भी

उतर रहे हैं सभी इक नशेब की जानिब
बुलंदियों से ये पत्थर भी मैं भी दुनिया भी

ख़बर किसी को किसी की नहीं यहाँ लेकिन
हवा की ज़द पे गुल-ए-तर भी मैं भी दुनिया भी