EN اردو
चलते चलते ये हालत हुई राह में बिन पिए मय-कशी का मज़ा आ गया | शाही शायरी
chalte chalte ye haalat hui rah mein bin piye mai-kashi ka maza aa gaya

ग़ज़ल

चलते चलते ये हालत हुई राह में बिन पिए मय-कशी का मज़ा आ गया

मुमताज़ नसीम

;

चलते चलते ये हालत हुई राह में बिन पिए मय-कशी का मज़ा आ गया
पास कोई नहीं था मगर यूँ लगा कोई दिल से मिरे आ के टकरा गया

आज पहले-पहल तजरबा ये हुआ ईद होती है ऐसी ख़बर ही न थी
चाँद को देखने घर से जब मैं चली दूसरा चाँद मेरे क़रीब आ गया

ऐ हवा-ए-चमन मुझ पे एहसाँ न कर निकहत-ए-गुल की मुझ को ज़रूरत नहीं
इश्क़ की राह में प्यार के इत्र से मेरे सारे बदन को वो महका गया

हिज्र का मेरे दिल में अंधेरा किए वो जो परदेस में था बसेरा किए
जिस के आने का कोई गुमाँ भी न था दफ़अ'तन मुझ को आ के वो चौंका गया

रंग 'मुमताज़' चेहरे का ऐसा खिला ज़िंदगी में नया हादिसा हो गया
आइना और मैं दोनों हैरान थे मैं भी शर्मा गई वो भी शर्मा गया