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चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा | शाही शायरी
chalo ye to hadsa ho gaya ki wo saeban nahin raha

ग़ज़ल

चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा

शुजा ख़ावर

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चलो ये तो हादसा हो गया कि वो साएबान नहीं रहा
ज़रा ये भी सोच लो एक दिन अगर आसमान नहीं रहा

ये बता कि कौन सी जंग में मैं लहूलुहान नहीं रहा
मगर आज भी तिरे शहर में कोई मुझ को मान नहीं रहा

ये नहीं कि मेरी ज़मीन पर कोई आसमान नहीं रहा
मगर आसमान कभी मिरे तिरे दरमियान नहीं रहा

शब-ए-हिज्र ने हवस और इश्क़ के सारे फ़र्क़ मिटा दिए
कोई चारपाई चटख़ गई तो किसी में बान नहीं रहा

सभी ज़िंदगी पे फ़रेफ़्ता कोई मौत पर नहीं शेफ़्ता
सभी सूद-ख़ोर तो हो गए हैं कोई पठान नहीं रहा

न लबों पे ग़म की हिकायतें न वो बे-रुख़ी की शिकायतें
ये इताब है शब-ए-वस्ल का कि मैं ख़ुश-बयान नहीं रहा

इसी बे-रुख़ी में हज़ार रुख़ हैं पुराने रिश्ते के साहिबो
कोई कम नहीं है कि जान कर भी वो मुझ को जान नहीं रहा