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चलो माना हमीं बे-कारवाँ हैं | शाही शायरी
chalo mana hamin be-karwan hain

ग़ज़ल

चलो माना हमीं बे-कारवाँ हैं

वज़ीर आग़ा

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चलो माना हमीं बे-कारवाँ हैं
जो जुज़्व-ए-कारवाँ थे वो कहाँ हैं

न जाने कौन पीछे रह गया है
मनाज़िर उल्टी जानिब को रवाँ हैं

ज़मीं के ताल सब सूखे पड़े हैं
परिंदे आसमाँ-दर-आसमाँ हैं

सुना है तिश्नगी भी इक दुआ है
लबों पर शब्द जिस के पर-फ़िशाँ हैं

खुले सहरा में मत ढूँडो हमें तुम
सदा से हम तुम्हारे दरमियाँ हैं