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चलो कुछ तो राह तय हो न चले तो भूल होगी | शाही शायरी
chalo kuchh to rah tai ho na chale to bhul hogi

ग़ज़ल

चलो कुछ तो राह तय हो न चले तो भूल होगी

एज़ाज़ अफ़ज़ल

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चलो कुछ तो राह तय हो न चले तो भूल होगी
अभी बंद हर गली है जो खुलेगी तूल होगी

तिरे हुस्न की वदीअत मिरी जुरअत-ए-नज़ारा
तिरे रू-ब-रू झुकेगी तो नज़र की भूल होगी

मिरे हम-सफ़र बढ़ेंगे मुझे रास्ता बता कर
मिरे पाँव से उड़ी है मिरे सर पे धूल होगी

मुझे क़िबला-रू बिठा कर मिरे हाथ उठाने वालो
ये यक़ीन भी दिला दो कि दुआ क़ुबूल होगी

चलो मान लें ये दोनों कोई शय है मस्लहत भी
न सितम का दिल दुखेगा न वफ़ा मलूल होगी

तिरा फ़न-ए-क़िस्सा-गोई अभी दार तक ही पहुँचा
मिरे शौक़ की कहानी अभी और तूल होगी

वो लहू की धार 'अफ़ज़ल' जो है क़र्ज़ ख़ंजरों पर
न करेंगे हम तक़ाज़ा न कभी वसूल होगी