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चलो के मिल के बदल देते हैं समाजों को | शाही शायरी
chalo ke mil ke badal dete hain samajon ko

ग़ज़ल

चलो के मिल के बदल देते हैं समाजों को

तासीर सिद्दीक़ी

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चलो के मिल के बदल देते हैं समाजों को
मिटा दें सारे ज़माने के बद रिवाजों को

फ़क़त दिलों को मिलाने से कुछ नहीं होता
बनेगी बात मिलाओगे जब मिज़ाजों को

सरों की भीड़ तो अक्सर मचाए हंगामा
सँवारो सोच से तुम अपने एहतिजाजों को

सुना है हँसने से चेहरे पे नूर आता है
कहाँ से पूरा करें इतनी एहतिजाजों को

नहीं रहे वो हसीं मय-कदों के जल्वे अब
चलो कि ढूँढें ग़मों के नए इलाजों को