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चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है | शाही शायरी
chale jaana magar sun lo mere dil mein ye hasrat hai

ग़ज़ल

चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है

बशीर महताब

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चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है
फ़क़त इक बार ही कह दो हमें तुम से मोहब्बत है

ये मौसम भी सुहाना है तिरी यादों के मेले हैं
तिरे बिन एक भी लम्हा बिता लेना क़यामत है

बुरा कहता है मुझ को ये ज़माना मैं ने माना है
न जाने क्यूँ उसे तुझ से नहीं कोई शिकायत है

अचानक यूँ जो मुझ से बद-गुमाँ तू हो गया हमदम
मुझे लगता है ये मेरे रक़ीबों की शरारत है

नहीं कोई ख़ता मेरी वो फिर भी ज़ख़्म देते हैं
मैं हूँ बीमार-ए-उल्फ़त बस दवा मेरी मोहब्बत है

रहे कब तक भला महताब तन्हाई के आलम में
कि अब तो आ भी जा उस को फ़क़त तेरी ज़रूरत है