EN اردو
चले हाए दम भर को मेहमान हो कर | शाही शायरी
chale hae dam bhar ko mehman ho kar

ग़ज़ल

चले हाए दम भर को मेहमान हो कर

जलील मानिकपूरी

;

चले हाए दम भर को मेहमान हो कर
मुझे मार डाला मिरी जान हो कर

ये सूरत हुई है कि आईना पहरों
मिरे मुँह को तकता है हैरान हो कर

जवाँ होते ही ले उड़ा हुस्न तुम को
परी हो गए तुम तो इंसान हो कर

बिगड़ने में ज़ुल्फ़-ए-रसा की बन आई
लिए रुख़ के बोसे परेशान हो कर

करम में मज़ा है सितम में अदा है
मैं राज़ी हूँ जो तुझ को आसान हो कर

जुदा सर हुआ पर हुए हम न हल्के
रही तेग़ गर्दन पर एहसान हो कर

न आख़िर बचा पर्दा-ए-राज़-ए-दुश्मन
हुआ चाक मेरा गरेबान हो कर

हवास आते जाते रहे रोज़-ए-वादा
तिरी याद हो कर मिरी जान हो कर

बुतों को जगह दिल में देते हो तौबा
'जलील' ऐसी बातें मुसलमान हो कर