चले गए हो सुकून-ओ-क़रार-ए-जाँ ले कर
हम अपने दर्द को जाएँ कहाँ कहाँ ले कर
बहुत दिनों में मिला है पयाम-ए-मौसम-ए-गुल
नसीम-ए-सुब्ह चली है कशाँ कशाँ ले कर
अब अपने अपने मुक़द्दर पे बात ठहरी है
उठा है अब्र-ए-गुहर-बार बिजलियाँ ले कर
यहाँ न मैं हूँ न तू है न कोई शहनाई
पहुँच गई है तिरी आरज़ू कहाँ ले कर
नए हैं जिस्म के तारों पे रूह के नग़्मे
उठे हैं बज़्म से इक कैफ़-ए-जावेदाँ ले कर
ग़म-ए-हयात ने फ़ुर्सत न दी सुनाने की
चले थे हम भी मोहब्बत की दास्ताँ ले कर
ग़ज़ल
चले गए हो सुकून-ओ-क़रार-ए-जाँ ले कर
हसन ताहिर