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चले गए हो सुकून-ओ-क़रार-ए-जाँ ले कर | शाही शायरी
chale gae ho sukun-o-qarar-e-jaan le kar

ग़ज़ल

चले गए हो सुकून-ओ-क़रार-ए-जाँ ले कर

हसन ताहिर

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चले गए हो सुकून-ओ-क़रार-ए-जाँ ले कर
हम अपने दर्द को जाएँ कहाँ कहाँ ले कर

बहुत दिनों में मिला है पयाम-ए-मौसम-ए-गुल
नसीम-ए-सुब्ह चली है कशाँ कशाँ ले कर

अब अपने अपने मुक़द्दर पे बात ठहरी है
उठा है अब्र-ए-गुहर-बार बिजलियाँ ले कर

यहाँ न मैं हूँ न तू है न कोई शहनाई
पहुँच गई है तिरी आरज़ू कहाँ ले कर

नए हैं जिस्म के तारों पे रूह के नग़्मे
उठे हैं बज़्म से इक कैफ़-ए-जावेदाँ ले कर

ग़म-ए-हयात ने फ़ुर्सत न दी सुनाने की
चले थे हम भी मोहब्बत की दास्ताँ ले कर