चलन इस दोग़ली दुनिया का गर मंज़ूर हो जाता
वो मुझ से दूर हो जाता मैं उस से दूर हो जाता
हुनर हाथों से चिकने का बचा कर ले गया मुझ को
भरोसे पाँव के रहता तो मैं मा'ज़ूर हो जाता
ज़माने-भर की बातों को अगर दिल से लगा लेता
जहाँ पे दिल धड़कता है वहाँ नासूर हो जाता
सफ़र करते हुए अपना हटा कर आँख से पट्टी
मैं संग-ए-मील जो पढ़ता थकन से चूर हो जाता
ये 'फ़ानी' दिल की सुनता है तभी गुमनाम है अब तक
अगर ये ज़ेहन की सुनता बहुत मशहूर हो जाता

ग़ज़ल
चलन इस दोग़ली दुनिया का गर मंज़ूर हो जाता
फ़ानी जोधपूरी