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चला है ले के मुझे ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा | शाही शायरी
chala hai le ke mujhe zauq-e-justuju mera

ग़ज़ल

चला है ले के मुझे ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा

रविश सिद्दीक़ी

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चला है ले के मुझे ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा
अब इंतिज़ार कर ऐ जान-ए-आरज़ू मेरा

मैं बन सका न तेरा ये बजा सही लेकिन
किसी को क्यूँ ये गुमाँ हो नहीं है तू मेरा

हवा-ए-दश्त बहुत दूर ले गई अक्सर
नहीं असीर-ए-चमन ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू मेरा

शिकस्त-ए-दिल की तलाफ़ी नज़र से क्या होगी
टपक पड़े न तिरी आँख से लहू मेरा

मिरी ग़ज़ल के लिए कौन मुंतज़िर है 'रविश'
पहुँच गया है कहाँ शौक़-ए-गुफ़्तुगू मेरा