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चल नहीं सकते वहाँ ज़ेहन-ए-रसा के जोड़-तोड़ | शाही शायरी
chal nahin sakte wahan zehn-e-rasa ke joD-toD

ग़ज़ल

चल नहीं सकते वहाँ ज़ेहन-ए-रसा के जोड़-तोड़

हबीब मूसवी

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चल नहीं सकते वहाँ ज़ेहन-ए-रसा के जोड़-तोड़
उन की चालें हैं क़यामत की बला के जोड़-तोड़

है नज़र-अंदाज़ कोई कोई मंज़ूर-ए-नज़र
देखना उस बुत की चश्म-ए-फ़ित्ना-ज़ा के जोड़-तोड़

कज-अदाई बात है जिस की लगावट खेल है
सीख ले उस फ़ित्ना-गर से कोई आ के जोड़-तोड़

पा के क़ाबू करते हैं अहल-ए-ग़रज़ क्या दाँव-घात
चलते हैं मतलब की चालें मुद्दआ' के जोड़-तोड़

दोस्त बन कर करते हैं नेकी के पर्दे में बदी
राज-निय्यत ये है देखो अग़निया के जोड़-तोड़

सख़्तियाँ उस्ताद हैं इंसाँ की दुनिया में 'हबीब'
करते हैं मग़्लूब को ग़ालिब सिखा के जोड़-तोड़