चल दिया नाज़ ज़माने के उठाने वाला
सारे घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
आँख पुर-नम है यही सोच के अहल-ए-दिल की
लौट कर अब नहीं आएगा हँसाने वाला
बात तो करते हैं सब लोग वफ़ा की लेकिन
किस ने देखा है कहाँ पर है निभाने वाला
अब परेशान सा फिरता है ज़माने भर में
ज़ख़्म-ए-दिल पर मिरे तेज़ाब लगाने वाला
शुक्र-ए-रब है मिरी फूलों पे गुज़ारी उस ने
आग पे सोया है बारूद बिछाने वाला
हम ने देखा है शब-ओ-रोज़ ज़माने में 'सबीन'
सुर्ख़-रू होता है सज्दों को सजाने वाला
ग़ज़ल
चल दिया नाज़ ज़माने के उठाने वाला
ग़ौसिया ख़ान सबीन